Sunday 21 March 2021

बस आँखों पर मरता है

बस आँखों पर मरता है
कितना पागल लड़का है

एक ज़रा सी बात पे ही
आप अभी तक गुस्सा है

दिल को है तकलीफ़ ज़रा
बाकी सब कुछ अच्छा है

मैंने सबसे पूछ लिया
हिज्र इश्क़ का बच्चा है

बातों में उसकी खो जाये
कितना अच्छा लहज़ा है

आपका ये शहर भी तो
मेरे शहर सा लगता है

तुमको ज़रा सा छू ले क्या
दिल ये हर पल बकता है

तेरी नज़र में है जादू
मुझको ऐसा लगता है

चलो कहीं पर चल आये
वक़्त पांव में चुभता है

माह के आख़िर में देखों
खाली बटुआ बचता है

मुझको कौन बतायेगा
आँसू कैसे बनता है

उसकी आँखें कैसे पढूं
वो नज़र झुकाकर चलता है

मेरे तो दो नाम है जी
बोलो जो अच्छा लगता है

मैंने वक्त से पूछा था
आपसे कम क्यों मिलता है

नींद भी कुछ रोज़ नहीं आती
इश्क़ में ये तो चलता है

#MaheshKumarbose 

Sunday 12 January 2020

उस लड़की का नाम परी हैं

तितली जैसी रंग बिरंगी,
बालों से वो लगती फिरंगी।
सोने के जैसे जो खरी हैं,
उस लड़की का नाम परी हैं।

इधर उधर फुदकती दिन भर,
खुशियाँ बांटती फिरती घर-घर।
जादू की जिसके पास छड़ी हैं,
उस लड़की का नाम परी हैं।

हैं सूरत उसकी कितनी प्यारी,
लगती हैं वो सबसे न्यारी।
जो थोड़ी सी बातूनी हैं,
उस लड़की का नाम परी हैं।

बातें उसकी मिश्री की डली हैं,
वो सब लोगों की लाड़ली हैं।
फूलों की जो छोटी सी लड़ी हैं,
उस लड़की का नाम परी हैं।

जितने भी आये हैं फटेहाल आये हैं

जितने भी आये हैं फटेहाल आये हैं,
इससे पहले भी तो कईं नये साल आये हैं।

जिनके दे चुके हैं जवाब हम कबके,
अब तुम्हारे ज़ेहन में वो सवाल आये हैं।

इस साल हमने भी लैला बदल डाली,
सहरा में जाके कर ये कमाल आये हैं।

हमसे अब और नहीं उठता ये वज़न,
सो तेरी यादों को दरिया में डाल आये हैं।

बचपना जिंदा रखना भी ज़रूरी हैं 'बेख़ुद'
सो हम मुठ्ठी भर रेत हवा में उछाल आये हैं।

~महेश कुमार बोस

भुला ना देना अपने किसी हिसाब में तुम मुझको

भुला ना देना अपने किसी हिसाब में तुम मुझको,
अपने ख्याल भेजना, जवाब में तुम मुझको।

तुम्हें नहीं होगी पसंद भले हीं सोहबत हम कांटों की,
दिखाई देती हो मगर हर एक गुलाब में तुम मुझको।

नींद अगर मुझे आ जाये तो बस ये कर लेना,
हौले से चूम लेना आकर ख्वाब में तुम मुझको।

तुम्हारी हीं खुशबू आती रहती हैं हर वक़्त इनसे,
आख़िर क्या डालकर देती हो किताब में तुम मुझको।

ये पिछले किसी जन्म की नेकियाँ काम आयी हैं,
कि मिली हो खुदा से खुद ख़िताब में तुम मुझको।

~महेश कुमार बोस

Saturday 11 January 2020

तेरी याद यूँहीं लिपटी रहेगी क्या जाल की तरह

तेरी याद यूँहीं लिपटी रहेगी क्या जाल की तरह,
ये साल भी गुजर जायेगा क्या पिछले साल की तरह।
जिसे तुम अपने लबों से लगाये रखती हो हर दम,
काश मेरे हाथ भी होतें तुम्हारे उस रूमाल की तरह।

हसीन चेहरों से अब खुद को बचाते हुयें चलेंगे

हसीन चेहरों से अब खुद को बचाते हुये चलेंगे,
अब तो तबस्सुम से भी खौफ़ खाते हुये चलेंगे।

उन्हीं लोगों ने बिछाये हैं मेरे पांव में कांटे,
जो मुझे कहते थें राह में फूल बिछाते हुये चलेंगे।

ये दुनिया ज़ालिम हैं सो हर वक्त होशियार रहना,
उन्हें हटा देगी रास्तें से जो घबराते हुये चलेंगे।

मेरे बटुवे में जब तक रहेंगी तेरी वो एक तस्वीर,
सारे फूल मेरे आगे हाथ फैलाते हुये चलेंगे।

अब अगर पलटकर देखों तो कोई नज़र नहीं आता,
जो कभी कहते थे कदम से कदम मिलाते हुये चलेंगे।

~महेश कुमार बोस

Sunday 8 December 2019

ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं

संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं।
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

देखकर हीं जिसकों सारे जुगनू मर रहें हैं,
एक झलक पाने को फूल आंहे भर रहें हैं।
बस अभी से तुम्हारी सांसें बढ़ रहीं हैं,
अब तक तो ली केवल उसने अंगड़ाई हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं,
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

आँखों में ख्वाब का एक दरिया तैर रहा हैं,
मेरा दिल जिसकी खुशबू के पीछे कर सैर रहा हैं।
लगता हैं इससे ही दुनिया के सारे रंग बने हैं,
बरखा ने भी बोला हैं इंद्रधनुष में यहीं समायी हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं,
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

ना जाने कितने पिकासो इसको खोज रहें हैं,
इसके खातिर कितने फ़लसफ़ी मर रोज रहें हैं।
कितनी ग़ज़लें, कितनी नज़्में, कितने गीत और
ना जाने कितनी बाकी इस पर लिखीं जानी रुबाई हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायीं हैं
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयीं हैं।

किसी के कांधे के दुपट्टे

किसी के कांधे के दुपट्टे,माथे की बिंदिया और आँख के काजल के लिए,
जिंदगी यूँ हीं गुजर जायेगी क्या एक पागल के लिए।

अपनी पसंद की छत भीगो लेना और बाकी सुखा छोड़ देना,
यह बात कहा अच्छी हैं यारों किसी बादल के लिए।

मैंने खुद अपने हाथ से तोड़ दिया मेरे सीने का वो पत्थर,
जब मालूम हुआ बना हीं नहीं कोई दिल मेरे इस दिल के लिए।

मैंने तुम्हारी खुशबू को भी जगह दी हैं मेरी ग़ज़लों में,
तुम्हें नहीं मालूम कितना मुश्किल हैं बांधना समन्दर को एक साहिल के लिए।

कोई हाथ पकड़कर नहीं पहुंचाता हैं 'बेख़ुद' मंजिल तक,
खुद ही बनाना पड़ता हैं रास्ता अपनी मंजिल के लिए।

Sunday 1 December 2019

हर एक शख़्स में यहाँ एक हैवान छुपा रहता हैं

हर एक शख़्स में यहाँ एक हैवान छुपा रहता हैं।
क्या अब भी तुम्हें लगता हैं कि यहाँ खुदा रहता हैं|

इन मासूम कलियों ने आख़िर किसी का क्या बिगाड़ा हैं,
फिर क्यूँ इनके पीछे इंसान बनकर दरिंदा लगा रहता हैं।

मेरी बद्दुआ हैं वो दरख़्त कट जाये, वो छत गिर जाये,
जिसके सायें में आदमी की शक्ल में कोई भेड़िया रहता हैं।

सज़ा-ए-मौत भी कुछ नहीं उस ज़ाहिल के लिए,
जिंदा जला दो जिसके अंदर हवस का ये कीड़ा रहता हैं।

जिंदगी देने वालें की ही जिंदगी छीन ली जानवरों ने,
और खुदा तू हैं कि ये सब चुपचाप देखता रहता हैं।

Saturday 30 November 2019

कब से टिकी हैं निगाहें मेरी

कब से टिकी हैं निगाहें मेरी मोबाइल की स्क्रीन पर, 
कब उगेगा उसके मैसेज का पौधा इस बंजर जमीन पर।
तुम बताने आये हो मुझे मतलब इश्क़-ओ-आशिक़ी का,
जी करता हैं मार दू पत्थर गुमां का तुम्हारे यकीन पर।

Monday 25 November 2019

एक ग़ज़ल मुक्कमल हो जाये

एक ग़ज़ल मुक्कमल हो जाये ऐसा ख्याल दो कोई,
चार शेर तो पूरे हो चुके, मक़ता झोली में डाल दो कोई।

मैं भी तो अपनी होशियारी का पता दू तुमको,
हल करने को गणित का मुझको सवाल दो कोई।

फ़न-ए-शाइरी तो मुझको मेरे रब तुमने सौंप दी,
हर तरफ़ मगर ये चल जाये ऐसा कमाल दो कोई।

अभी तो इस राह पर मुझको चलना हैं बहुत,
उसकी याद का कांटा मेरे पांव से निकाल दो कोई।

तुम अगर ना आ सको तो इतना काम मेरा कर दो,
एक दुपट्टा, एक बिंदिया और भिजवा अपना शाल दो कोई।

~महेश कुमार बोस

तुम्हारी पल भर की वफ़ा का

तुम्हारी पल भर की वफ़ा का अच्छा सिला दूगां तुमको।
एक ग़ज़ल का तोहफ़ा देकर विदा दूगां तुमको।

अभी एकदम से जाओगे तो संभल ना पाऊँगा मैं,
कुछ वक्त दो मुझे मैं खुद हीं भुला दूगां तुमको।

तुम्हारी आँख का हर आंसू मेरी आँख से गिरता हैं,
फिर कैसे बिना किसी बात के रूला दूगां तुमको।

जाते जाते अपनी तस्वीर का एक तोहफ़ा दे दो,
जब मन भर जायेगा मेरा फिर से लौटा दूगां तुमको।

तुम्हारा नाम लेने से हीं जब तुम्हारी खुशबू महकने लगती हैं,
फिर ये कैसे सोच लिया तुमने कि दिल से मिटा दूगां तुमको।

~महेश कुमार बोस

Sunday 24 November 2019

क्या कोई ख़ास वजह हैं या यूँ हीं शर्माती हो तुम

क्या कोई ख़ास वजह हैं या यूँ ही शर्माती हो तुम,
आख़िर क्यूँ मुझे देखकर अपनी नजरें झुकाती हो तुम।

नहीं राब्ता कुछ मुझसे दिन भर यहीं कहती रहती हो,
फिर क्यूँ ख्वाब में आकर मुझको जगाती हो तुम।

तुम्हें देखूँ भी नहीं और तुमसे बात भी ना करूँ मैं,
ये आख़िर किस गुनाह की सज़ा मुझे दिये जाती हो तुम।

तुम्हें खुद भी ये बात मालूम नहीं हैं शायद,
कि हर जगह हर शय में मुझको नजर आती हो तुम।

बस ये कि लबों से अपने कुछ ज़ाहिर नहीं करती हो,
मगर आँखों में अपने कितनी बातें छुपाती हो तुम।

~महेश कुमार बोस

या तो दिल में तू अपने संभाल ले मुझको

या तो दिल में तू अपने संभाल ले मुझको।
या फिर हर एक किस्से से तू निकाल ले मुझको।

चित भी आया तो मैं तेरा,पट भी आया तो मैं तेरा,
भले सिक्का समझकर हवा में उछाल ले मुझको।

तुझसे लगकर महकता रहूँगा जब तक तू कहेगी,
अपने जिस्म पर इत्र समझकर डाल ले मुझको।

मैं तो पत्थर था तेरे छूने से ही तो मोम हुआ हूँ,
अब तेरी मर्जी किसी भी साँचे में ढ़ाल ले मुझको।

मैं बरसों से यहीं एक ख़िताब तो पाता रहा हूँ सबसे,
सो तू भी अब अपनी निगाहों से टाल ले मुझको।

~महेश कुमार बोस

Saturday 23 November 2019

निकाल दो बाहर अपने दिल ओ दिमाग से तुम मुझको


निकाल दो बाहर अपने दिल ओ दिमाग से तुम मुझको।
दख़ल कर दो अपने हर एक हिसाब से तुम मुझको।

मैं हूँ भी इसी काबिल सो यहीं हश्र करो मेरे साथ,
पन्ने की तरह कर दो अलग अपनी किताब से तुम मुझको।

एक और यार खो दिया मैंने खुद अपनी चालाकी से,
सो प्यासा ना रहने दो आज साक़ी शराब से तुम मुझको।

वो पंखुड़ियाँ चूभ रहीं हैं अब लबों पर कांटों की तरह,
सो दूर रखना बाग़बान अपने हर एक गुलाब से तुम मुझको।

यहीं एक जगह हैं जहाँ जी सकता हूँ मैं चैन से 'बेख़ुद'
हैं गर बस में तो नवाज़ दो तन्हाइयों के खिताब से तुम मुझको।

~महेश कुमार बोस