Monday 27 June 2016

तुमसे लडते रहने से

“तुमसे लडते रहने से हौंसला बढ़ता हैं मेरा,
ऐ!आँधियो तुम अपना क़हर जारी रखो।”

मुक्तक 1

किसका चेहरा रखू निगाह मे अपनी,
किसका नाम जुबान पर अपनी लाऊ,
तू मान जा साजन म्हारे अब तो…
तू कहे तो नाचू या फिर कोई गीत सुनाऊ..

कुछ शेर

1) इतनी यादों की भीड़ में एक अकेला मेरा मन,
बस तुझको हीं तुझको चाहे मेरा पागल मन।

2) अजीब शौक़ हैं यारो ये उसके बारे में सोचने का,
कि जब तक सोचू नहीं चैन हीं नहीं मिलता।

3)अकेले मैं तुमसे गुफ़्तगू करने को जी तो बहुत करता हैं,
पर कभी तुम अकेली रहती भी कहाँ हो।

4) अकेला ही चलना हैं अब मुझको जानिब-ए-मंज़िल मेरी,
दिल ही मेरा हमदम हैं दिल ही हैं वाइज़ मेरा।

5)झम झमाझम बरसे बदरा आज पिया के शहर में,
झूमन लागे हम भी अब तो पिया तोरे नैनन के असर में।