Sunday 8 December 2019

ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं

संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं।
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

देखकर हीं जिसकों सारे जुगनू मर रहें हैं,
एक झलक पाने को फूल आंहे भर रहें हैं।
बस अभी से तुम्हारी सांसें बढ़ रहीं हैं,
अब तक तो ली केवल उसने अंगड़ाई हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं,
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

आँखों में ख्वाब का एक दरिया तैर रहा हैं,
मेरा दिल जिसकी खुशबू के पीछे कर सैर रहा हैं।
लगता हैं इससे ही दुनिया के सारे रंग बने हैं,
बरखा ने भी बोला हैं इंद्रधनुष में यहीं समायी हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायी हैं,
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयी हैं।

ना जाने कितने पिकासो इसको खोज रहें हैं,
इसके खातिर कितने फ़लसफ़ी मर रोज रहें हैं।
कितनी ग़ज़लें, कितनी नज़्में, कितने गीत और
ना जाने कितनी बाकी इस पर लिखीं जानी रुबाई हैं।
संग अपने ये जो खुशबू नयी सी लायीं हैं
ये तितली कौनसे बाग से उड़कर आयीं हैं।

किसी के कांधे के दुपट्टे

किसी के कांधे के दुपट्टे,माथे की बिंदिया और आँख के काजल के लिए,
जिंदगी यूँ हीं गुजर जायेगी क्या एक पागल के लिए।

अपनी पसंद की छत भीगो लेना और बाकी सुखा छोड़ देना,
यह बात कहा अच्छी हैं यारों किसी बादल के लिए।

मैंने खुद अपने हाथ से तोड़ दिया मेरे सीने का वो पत्थर,
जब मालूम हुआ बना हीं नहीं कोई दिल मेरे इस दिल के लिए।

मैंने तुम्हारी खुशबू को भी जगह दी हैं मेरी ग़ज़लों में,
तुम्हें नहीं मालूम कितना मुश्किल हैं बांधना समन्दर को एक साहिल के लिए।

कोई हाथ पकड़कर नहीं पहुंचाता हैं 'बेख़ुद' मंजिल तक,
खुद ही बनाना पड़ता हैं रास्ता अपनी मंजिल के लिए।

Sunday 1 December 2019

हर एक शख़्स में यहाँ एक हैवान छुपा रहता हैं

हर एक शख़्स में यहाँ एक हैवान छुपा रहता हैं।
क्या अब भी तुम्हें लगता हैं कि यहाँ खुदा रहता हैं|

इन मासूम कलियों ने आख़िर किसी का क्या बिगाड़ा हैं,
फिर क्यूँ इनके पीछे इंसान बनकर दरिंदा लगा रहता हैं।

मेरी बद्दुआ हैं वो दरख़्त कट जाये, वो छत गिर जाये,
जिसके सायें में आदमी की शक्ल में कोई भेड़िया रहता हैं।

सज़ा-ए-मौत भी कुछ नहीं उस ज़ाहिल के लिए,
जिंदा जला दो जिसके अंदर हवस का ये कीड़ा रहता हैं।

जिंदगी देने वालें की ही जिंदगी छीन ली जानवरों ने,
और खुदा तू हैं कि ये सब चुपचाप देखता रहता हैं।