हर एक शख़्स में यहाँ एक हैवान छुपा रहता हैं।
क्या अब भी तुम्हें लगता हैं कि यहाँ खुदा रहता हैं|
इन मासूम कलियों ने आख़िर किसी का क्या बिगाड़ा हैं,
फिर क्यूँ इनके पीछे इंसान बनकर दरिंदा लगा रहता हैं।
मेरी बद्दुआ हैं वो दरख़्त कट जाये, वो छत गिर जाये,
जिसके सायें में आदमी की शक्ल में कोई भेड़िया रहता हैं।
सज़ा-ए-मौत भी कुछ नहीं उस ज़ाहिल के लिए,
जिंदा जला दो जिसके अंदर हवस का ये कीड़ा रहता हैं।
जिंदगी देने वालें की ही जिंदगी छीन ली जानवरों ने,
और खुदा तू हैं कि ये सब चुपचाप देखता रहता हैं।
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