कब से टिकी हैं निगाहें मेरी मोबाइल की स्क्रीन पर, कब उगेगा उसके मैसेज का पौधा इस बंजर जमीन पर। तुम बताने आये हो मुझे मतलब इश्क़-ओ-आशिक़ी का, जी करता हैं मार दू पत्थर गुमां का तुम्हारे यकीन पर।
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