निकाल दो बाहर अपने दिल ओ दिमाग से तुम मुझको।
दख़ल कर दो अपने हर एक हिसाब से तुम मुझको।
मैं हूँ भी इसी काबिल सो यहीं हश्र करो मेरे साथ,
पन्ने की तरह कर दो अलग अपनी किताब से तुम मुझको।
एक और यार खो दिया मैंने खुद अपनी चालाकी से,
सो प्यासा ना रहने दो आज साक़ी शराब से तुम मुझको।
वो पंखुड़ियाँ चूभ रहीं हैं अब लबों पर कांटों की तरह,
सो दूर रखना बाग़बान अपने हर एक गुलाब से तुम मुझको।
यहीं एक जगह हैं जहाँ जी सकता हूँ मैं चैन से 'बेख़ुद'
हैं गर बस में तो नवाज़ दो तन्हाइयों के खिताब से तुम मुझको।
~महेश कुमार बोस
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