तुम्हारी पल भर की वफ़ा का अच्छा सिला दूगां तुमको।
एक ग़ज़ल का तोहफ़ा देकर विदा दूगां तुमको।
अभी एकदम से जाओगे तो संभल ना पाऊँगा मैं,
कुछ वक्त दो मुझे मैं खुद हीं भुला दूगां तुमको।
तुम्हारी आँख का हर आंसू मेरी आँख से गिरता हैं,
फिर कैसे बिना किसी बात के रूला दूगां तुमको।
जाते जाते अपनी तस्वीर का एक तोहफ़ा दे दो,
जब मन भर जायेगा मेरा फिर से लौटा दूगां तुमको।
तुम्हारा नाम लेने से हीं जब तुम्हारी खुशबू महकने लगती हैं,
फिर ये कैसे सोच लिया तुमने कि दिल से मिटा दूगां तुमको।
~महेश कुमार बोस
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