Saturday 30 November 2019

कब से टिकी हैं निगाहें मेरी

कब से टिकी हैं निगाहें मेरी मोबाइल की स्क्रीन पर, 
कब उगेगा उसके मैसेज का पौधा इस बंजर जमीन पर।
तुम बताने आये हो मुझे मतलब इश्क़-ओ-आशिक़ी का,
जी करता हैं मार दू पत्थर गुमां का तुम्हारे यकीन पर।

Monday 25 November 2019

एक ग़ज़ल मुक्कमल हो जाये

एक ग़ज़ल मुक्कमल हो जाये ऐसा ख्याल दो कोई,
चार शेर तो पूरे हो चुके, मक़ता झोली में डाल दो कोई।

मैं भी तो अपनी होशियारी का पता दू तुमको,
हल करने को गणित का मुझको सवाल दो कोई।

फ़न-ए-शाइरी तो मुझको मेरे रब तुमने सौंप दी,
हर तरफ़ मगर ये चल जाये ऐसा कमाल दो कोई।

अभी तो इस राह पर मुझको चलना हैं बहुत,
उसकी याद का कांटा मेरे पांव से निकाल दो कोई।

तुम अगर ना आ सको तो इतना काम मेरा कर दो,
एक दुपट्टा, एक बिंदिया और भिजवा अपना शाल दो कोई।

~महेश कुमार बोस

तुम्हारी पल भर की वफ़ा का

तुम्हारी पल भर की वफ़ा का अच्छा सिला दूगां तुमको।
एक ग़ज़ल का तोहफ़ा देकर विदा दूगां तुमको।

अभी एकदम से जाओगे तो संभल ना पाऊँगा मैं,
कुछ वक्त दो मुझे मैं खुद हीं भुला दूगां तुमको।

तुम्हारी आँख का हर आंसू मेरी आँख से गिरता हैं,
फिर कैसे बिना किसी बात के रूला दूगां तुमको।

जाते जाते अपनी तस्वीर का एक तोहफ़ा दे दो,
जब मन भर जायेगा मेरा फिर से लौटा दूगां तुमको।

तुम्हारा नाम लेने से हीं जब तुम्हारी खुशबू महकने लगती हैं,
फिर ये कैसे सोच लिया तुमने कि दिल से मिटा दूगां तुमको।

~महेश कुमार बोस

Sunday 24 November 2019

क्या कोई ख़ास वजह हैं या यूँ हीं शर्माती हो तुम

क्या कोई ख़ास वजह हैं या यूँ ही शर्माती हो तुम,
आख़िर क्यूँ मुझे देखकर अपनी नजरें झुकाती हो तुम।

नहीं राब्ता कुछ मुझसे दिन भर यहीं कहती रहती हो,
फिर क्यूँ ख्वाब में आकर मुझको जगाती हो तुम।

तुम्हें देखूँ भी नहीं और तुमसे बात भी ना करूँ मैं,
ये आख़िर किस गुनाह की सज़ा मुझे दिये जाती हो तुम।

तुम्हें खुद भी ये बात मालूम नहीं हैं शायद,
कि हर जगह हर शय में मुझको नजर आती हो तुम।

बस ये कि लबों से अपने कुछ ज़ाहिर नहीं करती हो,
मगर आँखों में अपने कितनी बातें छुपाती हो तुम।

~महेश कुमार बोस

या तो दिल में तू अपने संभाल ले मुझको

या तो दिल में तू अपने संभाल ले मुझको।
या फिर हर एक किस्से से तू निकाल ले मुझको।

चित भी आया तो मैं तेरा,पट भी आया तो मैं तेरा,
भले सिक्का समझकर हवा में उछाल ले मुझको।

तुझसे लगकर महकता रहूँगा जब तक तू कहेगी,
अपने जिस्म पर इत्र समझकर डाल ले मुझको।

मैं तो पत्थर था तेरे छूने से ही तो मोम हुआ हूँ,
अब तेरी मर्जी किसी भी साँचे में ढ़ाल ले मुझको।

मैं बरसों से यहीं एक ख़िताब तो पाता रहा हूँ सबसे,
सो तू भी अब अपनी निगाहों से टाल ले मुझको।

~महेश कुमार बोस

Saturday 23 November 2019

निकाल दो बाहर अपने दिल ओ दिमाग से तुम मुझको


निकाल दो बाहर अपने दिल ओ दिमाग से तुम मुझको।
दख़ल कर दो अपने हर एक हिसाब से तुम मुझको।

मैं हूँ भी इसी काबिल सो यहीं हश्र करो मेरे साथ,
पन्ने की तरह कर दो अलग अपनी किताब से तुम मुझको।

एक और यार खो दिया मैंने खुद अपनी चालाकी से,
सो प्यासा ना रहने दो आज साक़ी शराब से तुम मुझको।

वो पंखुड़ियाँ चूभ रहीं हैं अब लबों पर कांटों की तरह,
सो दूर रखना बाग़बान अपने हर एक गुलाब से तुम मुझको।

यहीं एक जगह हैं जहाँ जी सकता हूँ मैं चैन से 'बेख़ुद'
हैं गर बस में तो नवाज़ दो तन्हाइयों के खिताब से तुम मुझको।

~महेश कुमार बोस

Friday 22 November 2019

भीड़ में जब भी उस आँख का इशारा हो जाता हैं

भीड़ में जब भी उस आँख का इशारा हो जाता हैं,
हम लाख करें कोशिश पर प्यार दोबारा हो जाता हैं। 

कोई शख़्स खुद भी आ जाये तो कुछ फर्क नहीं पड़ता,
और किसी की याद हीं से उम्रभर का गुजारा हो जाता हैं।

तुम हर बार हीं आख़िर बार हैं ये कहने आती हो,
और हर बार हीं मेरा दिल फिर तुम्हारा हो जाता हैं।

टूटकर जब सोच-सोच के तेरे बारे में बिखरने लगता हूँ,
फिर तेरे किसी ख्याल का मुझकों सहारा हो जाता हैं।

सामने रहता हैं तब तक कोई राब्ता नहीं रहता उससे,
फिर क्यूँ कोई शख़्स बिछड़ जाने पर इतना प्यारा हो जाता हैं।

~ महेश कुमार बोस

Wednesday 20 November 2019

अपने जिस्म पर खुशबू

अपने जिस्म पर खुशबू तेरी सजाये हुये,
मुद्दत हुयी तुझसे हाथ भी मिलाये हुये।
तुझसे नज़रें मिलाने से भी कतराने लगे हैं,
कदम- कदम पर तूने हैं कातिल बिठाये हुये।
~महेश कुमार बोस

तुम अपने होठों से

तुम अपने होठों से केनवास को चूमती होगी तो, कई
सारी तस्वीरें उकर आती होगी,
क्या तुमने अपने होठों से केनवास को चूमकर मेरी भी कोई तस्वीर बनाई हैं।

~महेश कुमार बोस

मेरे मैसेज बस पढ़कर छोड़ देती हो

बेवजह हीं जब तुम मुझसे मुँह मोड़ देती हो,
ना जाने कितने ख्वाबों को तुम मेरे तोड़ देती हो।
मैं तुम्हारें जवाब के इंतज़ार में कितना बैचेन रहता हूँ,
और तुम हो कि, मेरे msg बस पढ़ कर छोड़ देती हो।

मैं तुम्हारे हर एक ख्याल को ग़ज़ल में पिरोकर रखता हूँ,
मैं तुम्हारी हर एक तस्वीर को आँखों के दरिया में डूबोकर रखता हूँ।
तुम हो कि उन ग़ज़लों को बिना पढें हीं छोड़ देती हो।
मेरी आँखों के दरिया में जाकर उन तस्वीरों को निचोड़ देती हो।
मैं तुम्हारें जवाब के इंतज़ार में कितना बैचेन रहता हूँ।
और तुम हो कि मेरे msg बस पढ़कर छोड़ देती हो।

तुमसे अच्छे तो हैं ख्वाब तुम्हारे जो मुझको तुमसे जोड़े रखते हैं,
और नींद तोड़ने वाले हर पत्थर को आँखों के बाहर छोड़े रखते हैं।
तुम ख्वाब में तो हर रोज ही अपनी कहानी में नया मोड़ देती हो,
और हक़ीक़त में फिर बेपरवाह होके मुझसे नाता तोड़ देती हो।
मैं तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में कितना बैचेन रहता हूँ,
और तुम हो कि मेरे msg बस पढ़कर छोड़ देती हो।

~महेश कुमार बोस

ये और बात कि कुछ सहा नहीं जा रहा

ये और बात कि कुछ सहा नहीं जा रहा,
पर दर्द दिल का मुझसे कहा नहीं जा रहा।

कौनसी मय पिलायी थी तूने अपनी आँखों से,
एक अरसा बीता पर अब तक नशा नहीं जा रहा।

लोग कांटों को भी गले लगाये फिर रहे हैं
और मैं फूल होकर भी छुआ नहीं जा रहा।

एक कस आशिक़ी की सिगरेट का मार दिया था,
मुद्दत हुयी मेरी आँखों से धुआँ नहीं जा रहा।

एक शख़्स हैं जो हो नहीं पा रहा मेरा 'बेख़ुद',
एक मैं हूँ जिससे किसी और का हुआ नहीं जा रहा।

~ महेश कुमार बोस