Sunday 12 January 2020

जितने भी आये हैं फटेहाल आये हैं

जितने भी आये हैं फटेहाल आये हैं,
इससे पहले भी तो कईं नये साल आये हैं।

जिनके दे चुके हैं जवाब हम कबके,
अब तुम्हारे ज़ेहन में वो सवाल आये हैं।

इस साल हमने भी लैला बदल डाली,
सहरा में जाके कर ये कमाल आये हैं।

हमसे अब और नहीं उठता ये वज़न,
सो तेरी यादों को दरिया में डाल आये हैं।

बचपना जिंदा रखना भी ज़रूरी हैं 'बेख़ुद'
सो हम मुठ्ठी भर रेत हवा में उछाल आये हैं।

~महेश कुमार बोस

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