रंग बिखर रहे हैं आज हर गली-चौबारों में,
फिर भी हैं सूनापन मेरे मन के गलियारों में,
तुम गर आ जाती तो मन पुलकित हो जाता,
घुल जाता मैं भी तुम संग प्रिये आज बहारों में।
~महेश कुमार बोस
फिर भी हैं सूनापन मेरे मन के गलियारों में,
तुम गर आ जाती तो मन पुलकित हो जाता,
घुल जाता मैं भी तुम संग प्रिये आज बहारों में।
~महेश कुमार बोस
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